चरवाहे पशुओं को लेकर,
चले गाँव की ओर डगर पर,
देख मुदित-मन मना रहे हैं, बाल-वृन्द जीवन का मेला।
आई गोधूलि की वेला।

देख कुएँ  से खिंच गागरी,
चली जा रही सुघर नागरी,
झाँक रहा नभ के कोने से बादल का जोड़ा अलबेला।
आई गोधूलि की वेला।

सब जीवन सागर के तट पर,
चले जा रहे प्रिय-संग हँस कर,
पर कवि खड़ा किनारे पर है नीरव साथी-हीन अकेला।
आई गोधूलि की वेला।

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