सेनानी सुभाषस्वातंत्र्य पंथ के अमर पथिक, योद्धा, मृत्युंजय सेनानी।
युग-युग की परवशता के प्रति तुमने रण करने की ठानी ।।

तुम देख चुके थे जीवन में निज जन्म भूमि की बरबादी,
तुम समझ चुके थे, माँगे से मिलती न कभी भी आजादी
अपने युग के नेताओं के सिद्धान्त नहीं तुमने माने,
तुम रक्त बहाने को आतुर, तुम आज़ादी के परवाने,
जग के महानतम वीरों ने, की सदा तुम्हारी अगवानी।
स्वातंत्र्य पंथ के अमर पथिक, योद्धा, मृत्युंजय सेनानी।

तुम चले गये निज देश छोड़ रूठी स्वतंत्रता लाने को,
तुम चले गये भारत माँ के उन पूतों को समझाने को-
जो उल्टे माँ के बन्धन को मजबूत बनाते जाते थे,
जो पास खड़ी आज़ादी को अति दूर भगाते जाते थे,
जो खुद ग़ुलाम, औरों को भी करते गुलाम कर नादानी।
स्वातंत्र्य पंथ के अमर पथिक, योद्धा, मृत्युंजय सेनानी।।

ओ देव, तुम्हारी माया यह जग समझ नहीं बिल्कुल पाया,
निज जादू से तुमने उसको कुछ का कुछ करके दिखलाया,
सब नर, नारी, बूढ़े, बच्चों को जीवन का सन्देश दिया,
तब आज़ादी के हित सबने लड़ मरने का व्रत ठान लिया,
फिर गर्ज उठे सन् सत्तावन के बाद वीर हिन्दुस्तानी।
स्वातंत्र्य पंथ के अमर पथिक, योद्धा, मृत्युंजय सेनानी।।

उस स्तब्ध शान्तसागर में तुमने यह कह प्रबल प्रलय ला दी,
तुम मुझ को दे दो रक्त तुम्हें, बदले में दूँगा आज़ादी,
हम प्रस्तुत हैं, हम प्रस्तुत हैं, सब अपना रक्त बहाने को,
हम प्रस्तुत है सब प्राण गँवा कर भी आज़ादी पाने को,
तब गूँज उठा आकाश सुनी जब उसने जनता की वाणी।
स्वातंत्र्य पंथ के अमर पथिक, योद्धा, मृत्युंजय सेनानी।।

तुमने आज़ादी की ऐसी भीषण ज्वाला सुलगाई थी,
पत्ते खाकर, भूखे रह कर, मानव ने लड़ी लड़ाई थी,
राणा प्रताप ने ही जग को ऐसा करके दिखलाया था,
या वीर मैज़िनी ने भूखे मानव को सिंह बनाया था,
तुम विचलित कभी न हुए आग बरसे, बरसे चाहे पानी।
स्वातंत्र्य पंथ के अमर पथिक, योद्धा, मृत्युंजय सेनानी।।

ओ जादूगर, तुमने फूलों को लाखों में नीलाम किया,
घर-बाहर देकर लोगों ने फिर उन फूलों का दाम दिया,
तुम गर्ज उठे-ओ धनवालो, रण करने को मुझ को धन दो,
तुम गर्ज उठे भारत माँ के आगे सब कुछ कर अर्पण दो,
सुनते ही कई निकल आये फिर भामाशाह सदृष दानी।
स्वातंत्र्य पंथ के अमर पथिक, योद्धा, मृत्युंजय सेनानी।।

तुम बोल उठे, उस ‘अराकानयोमा’ के जाना पार हमें,
उस दूर क्षितिज में देखों देश हमारा रहा पुकार हमें,
जिसकी मिट्टी में खेले हैं हम सब बनकर भाई भाई,
नर ही क्या नारी ने भी उस क्षण अमर क्रान्ति कर दिखलाई
अवतरित हुई फिर नारियाँ बनकर झांसी की रानी।
स्वातंत्र्य पंथ के अमर पथिक, योद्धा, मृत्युंजय सेनानी।।

तुम थे प्रताप की शक्ति, शिवा की भक्ति, कृष्ण की नीति लिये
ले विष्णुगुप्त की लगन, मौर्य का शौर्य, शत्रु भयभीत किये,
तुमने ओ वीर, असम्भव को भी सम्भव करके दिखलाया,
युग-युग के बन्दी मानव को आज़ादी का पथ बतलाया,
बलिदान शब्द हो गया धन्य पाकर के तुम-सा बलिदानी।
स्वातंत्र्य पंथ के अमर पथिक, योद्धा, मृत्युंजय सेनानी।।

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