किसी समय सन्ध्या को आना।

बन कर नभ का राजदुलारा, सुन्दर तारा प्यारा-प्यारा, मैं अपलक होकर देखूँगा चमक-चमक तुम झलक दिखाना। किसी समय सन्ध्या को आना। सारे जग की लिए उदासी, मैं जब जाऊँ बनवासी, तुम विहंग बन कर फिर मुझको अपना प्यारा नाथ सुनाना। किसी समय सन्ध्या को आना । सूरज नभ में डूब Read more…

जीवन में सूनापन पाला

दुनिया की मणि-कंचन लाकर, प्रिय की पूजा की गा-गाकर, भिक्षुक ने सूनी झोली का सूनापन ही बिखरा डाला। जीवन में सूनापन पाला। कितनी धड़कन, कितना स्पन्दन, कितना गायन, कितना रोदन, इन सब को लेकर दहक उठी, प्रेयसि, मेरी अन्तर्ज्वाला। जीवन में सूनापन पाला। अन्तर्ज्वाला से पिघल पिघल, उर आया इन Read more…

मेरे पथ में घोर अँधेरा।

पथ-विचलित होने का डर है, तम में ढूँढ रहा कुछ कर  है, सम्भव, इस पथ पर मिल जाए , मुझे ढूँढता कोई मेरा। मेरे पथ में घोर अँधेरा। मैं एकाकी बीहड़ पथ  पर, पग धरता हूँ कुछ रुक रुक कर, तारे प्रश्न किया करते हैं, ‘कोई रहा नहीं क्या तेरा?’ Read more…

काग पक्षी गा रहा है

बैठ कर गृह के विटप पर, और स्वर में तीव्रता भर, दे रहा सन्देश, ‘मिलने आज कोई आ रहा है।’ काग पक्षी गा रहा है खिल उठा मेरे निलय भी, हो उठा हर्षित ह्रदय भी, लोचनों में आज फिर उन्माद आकुल छा रहा है। काग पक्षी गा रहा है है Read more…

प्रति क्षण तुम्हारा ध्यान है।

मेरे लिए दिन रात भी, अति मस्त मधुर प्रभात भी, सब हो गये हैं एक मुझको कुछ न इनका ज्ञान है। प्रति क्षण तुम्हारा ध्यान है। कब शीत आकर मिट गया, कब ग्रीष्म का बल घट गया, हेमन्त और बसन्त की मुझ को न कुछ पहचान है। प्रति क्षण तुम्हारा Read more…

बहता है बरसाती नाला

मद-भरी जवानी छाई है, नव हास रास ले आई है, वह झूम उठा, पावस ऋतु बनकर आई है साक़ी बाला। बहता है बरसाती नाला बह रहा कगारे तोड़ ताड़ , सीमा के बन्धन  छोड़ छाड़, अत्याचारी ने कई सन्निकट गाँवोँ  दल डाला। बहता है बरसाती नाला पर जब पावस ऋतु Read more…

कौन ऐसा है नगर में?

देखता हो रह मेरी, हो जिसे अब चाह मेरी, कौन मेरे हित जलाकर, दीप बैठा है डगर में? कौन ऐसा है नगर में? रुक गए हैं पाँव मेरे, समझ कर ये भाव मेरे, थक गए हैं हम यहीं विश्राम कर लें इस पहर में। कौन ऐसा है नगर में? इस Read more…

आई गोधूलि की वेला।

चरवाहे पशुओं को लेकर, चले गाँव की ओर डगर पर, देख मुदित-मन मना रहे हैं, बाल-वृन्द जीवन का मेला। आई गोधूलि की वेला। देख कुएँ  से खिंच गागरी, चली जा रही सुघर नागरी, झाँक रहा नभ के कोने से बादल का जोड़ा अलबेला। आई गोधूलि की वेला। सब जीवन सागर Read more…

गीत नहीं लिखने पाता हूँ।

इस जगती के कोलाहल में, राग-रंग में, चहल-पहल  में, इसलिए तो शुन्य विजन में, बैठ हृदय को बहलाता हूँ। गीत नहीं लिखने पाता हूँ। मेरे कुछ इतिहास नहीं है, मन में अब उल्लास नहीं है, मैं गुलाब पुष्प, आह! खिलते ही तोड़ लिया जाता हूँ। गीत नहीं लिखने पाता हूँ। Read more…

भाव कुछ आते नहीं हैं।

क्या लिखूं तुम ही बता दो, वेदना मेरी हिला दो, आज मेरे स्वप्न में आ, मीत, मुस्काते नहीं हैं। भाव कुछ आते नहीं हैं। शांति सी छाई निलय में, स्तब्धता छाई हृदय में, आज हूँ मैं मौन, लोचन अश्रु भर लाते नहीं हैं। भाव कुछ आते नहीं हैं। अंगुलियाँ चलतीं Read more…