कवि सम्मेलनों में एक छत्र-राज जिन चुनिंदा कवियों का रहा उनमे से एक विशिष्ट नाम है कवि देवराज दिनेश।

कविता “भारत मां की लोरी” का उनके द्वारा कविता पाठ जिसने भी सुना होगा वह सौभाग्यशाली रहा होगा कि उसने हिन्दी काव्य मंचों की अप्रतिम रचना सुनी ।

उनका काव्य पाठ मंच की गरिमा बढा़ देता था ।

पर मेरे पास एक ऐसी सूचना भी है जिसे बहुत कम लोग जानते होंगे। मेने अपने सामने उन्हे गुरु गोविन्द सिह की तपस्थली पौंटा साहिब मे काव्य पाठ करते हुए सुना है। वहां सत् श्री अकाल के नारे गूंजने लगते और लोग मंत्र मुग्ध होकर उन्हे सुनते।

गुरु गोविन्द सिह जी ने अपने शिष्यों को पौंटा साहिब मे शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा दी थी।

उनके साथ असंख्य संस्मरण हैं मेरे। मै अपनी बहनो के साथ उन्हे चाचा जी कहा करता था। वे भी इतना ही दुलार देते थे।

देहरादून आते तो कवि गोष्ठी जमती। उन्होंने अपनी आत्मकथा पर आधारित उपन्यास की भी शुरुआत हमारे घर से की थी। वे बोलते और दूसरे लिखते। वे कहते रहे कि उन्हे देवप्रयाग जाना है और वहीं पर कुछ लिखना है।

आल इन्डिया रेडियो से उनकी आवाज नाटकों मे सुनाई देती तो सबका मन रोमांचित हो उठता। उनके साथ दीनानाथ जी, चिरंजीत जी आदि होते।

देहरादून में एक संस्था ने “भारत मां की लोरी” का अद्भुत मंचन भी कराया गया था।

बाल साहित्य मे उनको महारथ हासिल थी।

आत्मकथ्यो पर आधारित उपन्यास वे लिख नहीं सके और उस उपन्यास का अद्भुत पात्र दिबुवा खुल कर खेल नहीं सका उपन्यास मे।

उनके महाप्राण की सूचना मिलते ही मै और अम्मा जी मालवीय नगर, दिल्ली पहुंचे।

मेरे जन्म से पहले से पिता जी श्री राम शर्मा ‘प्रेम’ से उनके पारिवारिक सम्बन्ध रहे। हम एक परिवार ही रहे और हैं।

आज भी मै राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर होता हूं तो उन्हे तलाशता हूँ।

उनके ठहाके जीवन से भरे होते थे और एक बार ही बस मैने उनकी आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहती देखी थी । जब पिता जी के निधन पर वे देहरादून आये थे। आत्मीयता की पराकाष्ठा थी।

कवि देवराज दिनेश हिन्दी साहित्य में एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रहे हैं।

आज मै चालीस किताबें लिखने के बाद कह सकता हूं कि हम उसी साहित्य परंपरा के पथिक हैं ।


डा. अतुल शर्मा|

देहरादून
23.08.2020