चीन की जनता
तुम्हारी विवशता मैं जानता हूँ।
इसलिए ही तो तुम्हारे नाम पाती लिख रहा हूँ ।
पढ़ रहा हूँ
काव्य का सोपान ऐसा गढ़ रहा हूँ।
भाव मेरे पहुँच पाऐं आज तुम तक
लौह की प्राचीर में जकड़ी हुई तुम
आज अपने जाल में उलझी हुई-
मकड़ी सरीखी छटपटाती हो
मगर कुछ न कर पाती हो।
अमावस की अँधेरी रात चारों ओर छाई है
न दिखलाई तनिक देता तुम्हें कुछ
और कानों में तुम्हारे तेल,
तत्ता तेल डाला जा रहा है।
ताकि बाहिर की सुरीली शान्तिमय आवाज
कानों में न जा पाये तुम्हारे।
शान्ति की मृदु लोरियाँ तुम सुन न पाओ।
आज तुम को बधिर, गूँगा और अँधा कर दिया है।
तुम्हें तो बोलने तक की इजाजत भी नहीं।
मुँह खोलने तक की इजाजत भी नहीं।
जो तुम्हें आका कहें वह बोलते हो
जब तुम्हें आदेश दे मुँह खोलते हो।।
हाय रे दुर्भाग्य
एक युग में दो हठी साम्राज्यवादी देवता तुम को मिले हैं
माओ, चाऊ
कंस और हिरण्यकश्यप।
अहं में डूबे हुए,
इस सृष्टि का भगवान बनने जा रहे हैं।
सच कहूँ तो,
कफन अपना आप बुनने जा रहे हैं।
औ’ तुम्हारे सुखद, सुघड़ भविष्य से
दुर्दान्त दानव कर रहे खिलवाड़।
क्या न तुम में एक भी प्रह्लाद ?
इनकी क्रूरता का जो फिर करे विरोध
इनको दे सके उद्बोध।
इनकी क्रूर कुत्सित भावना पर कर सके आघात।
इनको ये बताये,
चीन की पीड़ित, व्यथित अति जर्जरित छाती
इन्हें खुल कर दिखाये।
देश में छाई तुम्हारे भुखमरी है
और पड़ दुर्भिक्ष,
सत्यानाश करते है तुम्हारे देश का
आ प्रबल बाढ़ें बहा देतीं तुम्हारा सब परिश्रम।
कहो इन से युद्ध का नारा तजें
गाएँ सुहाने शान्ति के मृदु गीत
और विकास की प्रिय लोरियाँ,
अपनी दुखी भू को सुनाएँ।
कह न पाओ देश की संतप्त पीड़ित कथा तुम इन से
इससे पूर्व ही ये
युद्ध की, झूठे भयावह आक्रमण की
छलभरी थोथी कथाएँ गढ़,
बरगलाते है तुम्हें !
दिग्भ्रम कराते हैं तुम्हें
क्या न तुम को ज्ञान
आजादी तुम्हारी से, तुम्हारे क्रूर शासक कर रहे खिलवाड़!
शान्ति का दामन कर रहे है फाड़।
युद्ध के स्वर में रहे चिंघाड़।
विश्वविजयी स्वप्न पलकों में रहे हैं पाल।
हिटलर की तरह वें चल रहे हैं आत्मघाती चाल।
विश्व के हित ला रहे हैं खींच कर भूचाल।।
है समय अब भी, अगर समझा सको तो
शीघ्र ! समझा लो उन्हें तुम,
देश मेरा शान्ति का सम्मान करता है।
वरना वही होगा हाल, हिटलर का हुआ था जो।
रक्त की नदियाँ बहेगी,
औ’ अनाथों का करूण चीत्कार
गगन का देगा कलेजा फाड़।
लौ बता दूँ आज तुम को भेद की यह बात,
वह भी इसलिए, इन्सान हूँ मैं।
और हर इन्सान का दुख दर्द है मेरे हृदय में।
चाहता हूँ मैं,
तुम्हारे देश में, अम्बार लाशों का न लग कर
महकती फुलवारियों की गंध आए।
ध्यान से सुनना जरा है भेद की यह बात।
अपने कंस और हिरण्यकश्यप को बता दे
देश मेरे में जरूरत के समय,
नरसिंह का अवतार होता है।
और मेरे देश का हर क्रुद्ध नर भी-
सिंह-सा खूँखार होता है।
और अपने कंस से कह दे
कि अत्याचारियों को देख कर उन्माद,
उनके क़हक़हों का सुन भयानक नाद,
भारत का सलोना कृष्ण, नटवर कृष्ण
तज कर रास, बाँसुरी कटिफेंट में धर
रोष से उत्तप्त हो कर हाथ में शारंग रव ले
कंस के शतखंड कर भू पर गिराता है।
क्रूर कुटिल टित घमंडियों का मान मिट्टी में मिलता है।
क्रूरता का बीज धरती से मिटाता है।
है समय
निज शासकों से
देश, जाति विनाशकों से
सख्त होकर बात कर,
समझा उन्हें बतला उन्हें-
यह युद्ध का व्यवसाय अति मँहगा पड़ेगा।
विश्वव्यापी युद्ध होगा इस धरा पर
युद्ध का ज्वालामुखी सारी धरा को निगल जायेगा।
है भला संसार का भी औ’
तुम्हारा भी इसी में
औ’ हमारा भी इसी में
छीनकर बन्दूक उनके हाथ से तुम तोड़ डालो।
कहो उनसे टैंक छोड़ें,
खेत में ट्रेक्टर चालाएँ।
लहलहाती गंदमी फसलें उगाएँ
बाँध बाँधे, देश से बाढ़ें भगाएँ।
शुष्क बंजर भूमि पर उपवन लगाएँ
यदि न मेरी बात मानी तो बता दूँ
रक्त की नदियाँ बहेंगी।
युद्ध औ’ दुर्भाग्य की गाथा कई युग तक कहेंगी।
इसलिए ही चीन की जनता,
तुम्हारे नाम पाती लिख रहा हूँ।
गर बचाना चाहते हो तो बचा लो
युद्ध के ज्वालामुखी से विश्व सारा।