मनहर पूनम की रात में, लख तारों की बारात में
पूछा चंदा से- बता, जवानी किसको कहते हैं ?
सीने पर अगणित घाव हों
फिर भी जीने के चाव हों
मुझ से मस्तानी चाल हों
गर्वोन्नत जिसका भाल हो
सुख-दु:ख दोनों से प्यार हो
संघर्ष गले का हार हो
जो जग को दे आलोक जवानी उसको कहते हैं।
दुनिया जिसको दुहराय, कहानी उसको कहते हैं।
पर्वत की मनहर गोद में, बहता भरकर आमोद में
पुछा निर्झर से -बता जवानी किसको कहते हैं ?
बोला -जिसमें कलनाद हो
अन्तर में अति आह्लाद हो
मस्ती हो और उमंग हो
उठती नित नयी तरंग हो
पथ में लिखकर चट्टान को
जो छोड़ न दे निज आन को
बाधाओं को दे मोड़, जवानी उसको कहते हैं।
अपना पथ स्वयं बनाय, रवानी उसको कहता हैं।।
लखकर उन्मत्त प्यार को, बासन्ती के श्रृंगार को
तब पूछा उससे-बता, जवानी किसको कहते हैं ?
जिस पर न कहीं प्रतिबँध हो
साँसों में भरी सुगन्ध हो
साथी जिसका मधुमास हो
निज पर जिसको विश्वास हो
गति में बंदी तूफ़ान हों
अधरों पर मृदु मुस्कान हो
जो चले पवन की चाल, जवानी उसको कहते हैं।
बिखराए रंग गुलाल, जवानी उसको कहते हैं।।
नभ पर चलते घनश्याम से, मनमोहक प्रिय अभिराम से,
तब मैंने पूछा- मीत ! जवानी किसको कहते हैं ?
हर्षे तो फूल खिला सके
रूठे तो प्रलय मचा सके
अन्तर में भीषण आग हो
मुख पर फिर भी अनुराग हो
विद्युत -सी संगिनि साथ हो
अमृत घट जिसके हाथ हो
मिल जहाँ अग्नि-जल रहें, जवानी उसको कहते हैं।
जिसकी गाथा सब कहें, जवानी उसको कहते हैं।।
कोयल बौराई जा रही, मधुवन पर मस्ती छा रही।
तब उससे पुछा -शुभे ! जवानी किसको कहते हैं ?
अन्तर में कसक कराह हो
प्रिय से मिलने की चाह हो
जो बैठी प्रिय की याद में
घिर जाती हो उन्माद में
पलकों में बंदी नीर हो
अन्तर में पलती पीर हो
फिर भी पंचम में गाय, जवानी उसको कहते हैं।
कर प्यार न जो पछताय, जवानी उसको कहते हैं।।
भँवरा सरवर पर गा रहा, शतदल पर यौवन छा रहा
तब उससे पुछा-सखे ! जवानी किसको कहते हैं ?
कलियों से तन बिंधवा सके
काँटो को मीत बना सके
बंदी बन प्रिय की बाँह में
जो रहे प्रणय की छाँह में
सुनकर जिसके गुंजार को
सौरभ मिल जाय बहार को
जो करे किसी को प्यार, जवानी उसको कहते हैं।
हो प्रिय पर जो बलिहार, जवानी उसको कहते हैं।।
अन्तर के मादक गीत से, तब अपने मन अपने के मीत से
फिर मैंने पूछा- बता ! जवानी किसको कहते हैं ?
बासन्ती-सी रसलीन हो
फागुन-जैसी रंगीन हो
रवि, शशि पलकों में बंद हो
अन्तर में नूतन छंद हो
प्रिय के वियोग में क्षीण हो
पर तांडव-लास्य-प्रवीण हो
जो प्रलय देख मुसकाय जवानी उसको कहते हैं।
जो बुझते दीप जलाय, जवानी उसको कहते हैं।।
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