मेरे लिए दिन रात भी,
अति मस्त मधुर प्रभात भी,
सब हो गये हैं एक मुझको कुछ न इनका ज्ञान है।
प्रति क्षण तुम्हारा ध्यान है।

कब शीत आकर मिट गया,
कब ग्रीष्म का बल घट गया,
हेमन्त और बसन्त की मुझ को न कुछ पहचान है।
प्रति क्षण तुम्हारा ध्यान है।

आकाश-दीपक बुझ चले,
पर हम न आपस में मिले,
संध्या-उषा से भी प्रबल प्रिय मानिनी का मान है ।
प्रति क्षण तुम्हारा ध्यान है।

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