पथ-विचलित होने का डर है,
तम में ढूँढ रहा कुछ कर  है,
सम्भव, इस पथ पर मिल जाए , मुझे ढूँढता कोई मेरा।
मेरे पथ में घोर अँधेरा।

मैं एकाकी बीहड़ पथ  पर,
पग धरता हूँ कुछ रुक रुक कर,
तारे प्रश्न किया करते हैं, ‘कोई रहा नहीं क्या तेरा?’
मेरे पथ में घोर अँधेरा।

सब कुछ देख चुका हूँ  जग में,
लाखों शूल चुमे  पग-पग में
मैंने अब तक कभी न पूछा, ‘बोलो, कितनी दूर सवेरा?’
मेरे पथ में घोर अँधेरा।

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