हैं तुम्हें चाँदनी रातें ही भातीं-
मैं मावस से भी प्यार निभाता हूँ।।
तुम चन्द्र बदन की छवि तक सीमित हो
कुन्तल के फन्दों में फँसने वाले
तट से ही गिनते सरिता की लहरें –
कृत्रिम मादकता पा हँसने वाले
है सरिता की गहराई में जाकर –
उसकी लहरों से रास रचाता हूँ।।
हैं तुम्हें चाँदनी रातें ही भातीं
मैं मावस से भी प्यार निभाता हूँ।।
तुम खिले पुष्प की मृदु पंखड़ियों पर
अपने जीवन का नेह लुटाते हो
जो पुष्प डाल से टूट भटक जाए-
उसको चरणों के तले दबाते हो।
मैं जिसको अपना कह दूँ जीवन में-
उसकी विपदाओं को अपनाता हूँ।
हैं तुम्हें चाँदनी रातें ही भातीं
मैं मावस से भी प्यार निभाता हूँ।।
तुम सुखी क्षणों में जितना गाते हो
दुःख में उससे दुगना चिल्लाते हो
जीवन का नारा बहुत लगाते हो-
पर जीवन क्या है समझ न पाते हो
तुम जिन शूलों को देख सिहर जाते-
मैं उनके दर्शन पर मुस्काता हूँ।
हैं तुम्हें चाँदनी रातें ही भातीं
मैं मावस से भी प्यार निभाता हूँ।।
तुम सदा कल्पना में खोए रहते
प्रेमी बनते हो चाँद -सितारों के
मैं हूं यथार्थ का जीवन में हामी-
मुख धोया करता हूँ अंगारों के।
तुम केवल विष की गाथा कहते हो –
मैं उसको पीकर गीत बनाता हूं।।
हैं तुम्हें चाँदनी रातें ही भातीं
मैं मावस से भी प्यार निभाता हूँ।।