मेरे अन्तर के गीत तुम्हें भायेंगे ही !
इन में जीवन की, सुख दुख की बातें भी हैं,
इन में रोदन की, गायन की रातें भी हैं।
इन में है विश्वास कि जिस की क्षमता पर,
हँस हँस कर काट दिए जीवन के दुसह प्रहर।
इन में मेरे जीवन की वह मजबूरी है,
जिसके बिन मेरी जीवन कथा अधूरी है।
इन में मेरे यौवन की वह मादकता है-
जन मानस जिसको निज कह अपनायेंगे ही,
मेरे अन्तर के गीत तुम्हें भायेंगे ही ।
इन में जीवन की हलचल है, क्रन्दन भी है,
इन में मरुथल की पीड़ा है, सुरभित नन्दन भी है।
चन्दा के संग सुखदायक मेघ घटाएँ हैं,
औ’ अमनिशा के सँग मन की दुविधाएँ हैं।
इन में प्रिय प्रकृति नटी की मनहर झांकी है,
अपने शहरी जीवन की छवि भी आँकी है।
है जीवन का उत्कर्ष और अपकर्ष यहाँ !
जो इन्हें पढ़ेंगे, निज कह दुहरायेंगे ही।
मेरे अन्तर के गीत तुम्हें भायेंगे ही ।।
भू के आकुलता देख गगन कुछ मुस्काया,
फिर घन मालायें तोड़ मुग्धमन मुस्काया।
जब मेघ हटे, ज्योत्सना बिखर कर अम्बर पर,
धरती को देने लगी प्रणय का पावन वर।
पर देख तभी निर्वासित तारक निशि रो दी,
पर तारक ने निशि के आँचल की मसि धो दी।
इन गीतों में स्मिति के क्षण हैं, आँसू भी हैं –
आशा है प्यासे प्राण इन्हें गायेंगे ही।
मेरे अन्तर के गीत तुम्हें भायेंगे ही।।