अति भला होता अगर ईश्वर तुम्हें पत्थर बनाता
समय पर तू शत्रु का सिर फोड़ने के काम आता
हाय! तेरी माँ न शठ ! क्योंकर तुझे पहिचान पाई ?
जन्मते ही जो न उसने, विषभरी घुट्टी पिलाई
क्या बुरा था, गर्भ गिर जाता, निंपूती ही कहाती
विश्व से कर्त्तव्य की प्रिय भावना तो मिट न पाती
धर्म की ले आड़ तूने, धर्म को धब्बा लगाया
राज्य लिप्सा के लिए निज राष्ट्र मिट्टी में मिलाया
व्यक्तिगत विद्वेश था, तो व्यक्ति से जाकर चुकाता
कौन ऐसा था कि तेरा साथ उस क्षण दे ना पाता ?
पर किया तूने नराधम, काम इतनी नीचता का
देखकर शरमा गई थी राष्ट्र की उन्नत पताका
ग्लानि से तेरी जननि के उठ सके होंगे न लोचन।
ओ विभीषण, ओ विभीषण, ओ विभीषण, ओ विभीषण ।।

ओ कलंकी, क्यों तुझे फिर ध्यान कुछ उनका न आया
था जिन्होंने साथ खेला साथ रोये, साथ गाया
हर तरह के संकटों से, हर समय तुझको बचाया
मृत्यु पथ पर दुष्ट ! उनका साथ भी तू दे न पाया
मद्यपी थे, भोगवादी थे, इसे मैं जानता हूँ
किन्तु वे बेहोश थे, इसको नहीं मै मानता हूँ
पूर्ण मानव थे, प्रबल रणधीर थे, प्रणवीर थे वे
जागरूक महान थे, रणदक्ष थे, गम्भीर थे वे
राष्ट्र के आगे उन्हें तो हेच था सारा जमाना
राष्ट्र-सम्मुख उन्होंने भगवान को भी कुछ न माना
वे लड़े, जी भर लड़े, भूखे लड़े, नंगे लड़े वे
राष्ट्र के प्रिय प्रश्न पर अन्तिम समय तक थे अड़े वे।
मर गए, पर कर गए थे, शत्रु का वे मान मर्दन।
ओ विभीषण, ओ विभीषण, ओ विभीषण, ओ विभीषण ।।

राम को क्या, राम को तो काम था अपना बनाना
वे चतुर नीतिज्ञ थे, वे देख बैठे थे ज़माना
जानते थे शत्रु से लड़ना नहीं आसान जग में
है बहुत विस्तृत अन्धेरा, जीत के इस जटिल मग में
संगठन की नींव का पत्थर उन्हें तू आ मिला जब
हँस पड़े, होंगे हृदय में, दूर चिन्ताएँ हुई सब
प्यास से आगे बढ़े, कह ‘भक्त’ छाती से लगाया
ओ नपुंसक ! राष्ट्र का सब भेद फिर तूने बताया
सोचता हूँ राम ने भी क्या किया, क्या कर दिखाया
देशद्रोही को भला क्यों देश का राजा बनाया ?
क्या बुरा था यदि तुझे वे बाद में शूली चढ़ाते
विश्व के इतिहास में जयचन्द पैदा हो न पाते
ले घृणा से नाम तेरा, थूकते हैं आज जन-मन
ओ विभीषण, ओ विभीषण, ओ विभीषण, ओ विभीषण ।।

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