बैठ कर गृह के विटप पर,
और स्वर में तीव्रता भर,
दे रहा सन्देश, ‘मिलने आज कोई आ रहा है।’
काग पक्षी गा रहा है

खिल उठा मेरे निलय भी,
हो उठा हर्षित ह्रदय भी,
लोचनों में आज फिर उन्माद आकुल छा रहा है।
काग पक्षी गा रहा है

है उठी मन-बीच आशा
हंस पड़ी संग ही निराशा,
क्यों दिलासा दे हृदय को व्यर्थ तू बहका रहा है।
काग पक्षी गा रहा है

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