काश! कि मैं पत्थर ही होता!
सुख-दुख सभी समेटे साथी, कभी न हँसता, कभी न रोता
कोई विरह वियोगिन, मुझसे
प्रियतम की उपमा दे जाती
भक्तों की टोली पर टोली,
मुझ पर फूल चढ़ाने आती
सब वरदान माँगते, पर मैं अक्षय बेहोशी में सोता।
काश! कि मैं पत्थर ही होता।।

काश! कि मैं बन पाता बादल!
मेरे लिए तरसते रहते, मोर पपीहों के दल के दल !
हाथ उठाकर मुझे बुलातीँ
गाकर गीत कृषक बालाएँ
बरबस मुझे खीँच ही लातीं
उनकी मादक मस्त अदाएँ
बादल छाए, सजन न आये, गाती गीत वियोगिन प्रतिपल।
काश! कि मैं होता बादल!
काश! कि मैं होता मैखाना !
डगमग चाल किसी की हिलते हाथ उठा लेते पैमाना।
मैं सुनता रहता साकी से,
प्रेमी पागल मनुहारें।
मुझको बहुत भली लगती हैं,
उनकी जीतें, उनकी हारें,
वह पगली उसकी दीवानी, वह पगला उसका दीवाना।
काश! कि मैं होता मैखाना!

काश! कि होता मस्त पवन मैं !
जिसे चाहता उसको छूकर, कर देता तन में सिहरन।
मेरी गति रुकते ही साथी,
जग जीवन की गति रुक जाती
कितने मधुर मधुर सन्देशे,
प्रेयसी प्रियतम को भिजवाती
लेकर मैं प्रियतम की पाती, उड़ जाता फिर नील गगन में
काश! कि होता मस्त पवन मैं!

काश! कहीं फिर शिशु बन पाता !
अम्मी मुझे मनाती रहती, भैया मुझे खिजाने आता!
मेरे सुघड़ कपोल बता दूँ,
दुनिया का तीरथ बन जाते
जूठन वहाँ न होती साथी !
सबके अधर चूम हर्षाते
सोजा मुन्ना, सोजा राजा, बहन सुलाती मैं सो जाता!
काश! कहीं फिर शिशु बन पाता!

काश! कहीं मैं कवि बन पाता !
अपना गायन, अपना रोदन, मेरे मीत मुझको अति भाता।
जिसे देखतीं मेरी आँखें,
उससे नए भाव ले आतीं
और किसी की सुन्दरता पर,
पगली अपना आप लुटातीं
मीत ! किसी की स्मृति में भी अभिनव मादक गीत बनाता।
काश! कहीं मैं कवि बन पाता!
काश! कहीं मैं होता पनघट !
गीत सुनती औ’ बलखाती आतीं नागरिकायें ले घट
प्राण ! मिलेंगे हम दीवाने
पनघट पर पीपल के नीचे
आह, किसी की राधारानी
करे  प्रतीक्षा आँखे मीचे
पीछे से आकर साँवरिया विहँस मूँद लेता दृग झटपट।
काश! कहीं मैं होता पनघट!

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