देखता हो रह मेरी,
हो जिसे अब चाह मेरी,
कौन मेरे हित जलाकर, दीप बैठा है डगर में?
कौन ऐसा है नगर में?

रुक गए हैं पाँव मेरे,
समझ कर ये भाव मेरे,
थक गए हैं हम यहीं विश्राम कर लें इस पहर में।
कौन ऐसा है नगर में?

इस जगह हैं चाँद – तारे,
बैठ अम्बर के सहारे,
रोकते है पंथ मेरा, डूब सरिता की लहर में ।
कौन ऐसा है नगर में?

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