देवि,-देख-मानव-जीवन-में।नारी बिन नर मौन खड़ा है,
नर बिन जीवन बहुत कड़ा है,
एक पंख के साथ, कहो, कब विहग भला उड़ सका गगन में।
देवि, देख मानव-जीवन में।

उर में कम्पन, तन में कम्पन
नयनों में चिंतन से जल-कण,
धीरे चला जा रहा पंछी जो उड़ता था मस्त पवन में।
देवि, देख मानव-जीवन में।

कहते नारी जग में माया,
मैं कहता हूँ शीतल छाया,
जीवन के मध्याह्न-काल में हम सोते ले नींद नयन में।
देवि, देख मानव-जीवन में।

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