मैं आशा और निराशा की चिर-संगिनि मस्त जवानी हूँ।
छोटी-सी एक कहानी हूँ।।

दो मधुर खिलौने ले करके
मैं खेल रहा भोला मानव
क्रीड़ा में मग्न नहीं सुनता
जीवन का कोलाहल रौरव
तन के बन्धन खुलते जाते, फिर भी करता मनमानी हूँ।
छोटी-सी एक कहानी हूँ।।

बढ़ना ही तो घट जाना है
मेरे इस मादक जीवन का
खिलना ही तो मुरझाना है
प्रिय ! कलिका के मृदृयोवन का
जो युग-युग से होती आई, मैं ऐसी ही नादानी हूँ।
छोटी-सी एक कहानी हूँ।।

नीरवता रजनी की मुझमें
लहरों की मुझमे चंचलता
मैं आत्म वेदना, महग्लानी
चिर अनुष्ठान, चिर कंपनता
सुधि आते नयन छलक आएँ, वह बीती बात पुरानी हूँ
छोटी-सी एक कहानी हूँ ।।

मैं वह वसन्त, जिसका यौवन
पागल भ्रमरों ने लिया लूट
मैं वह मतवाला राही हूँ
जिसका प्रिय संगी गया छूट
मैं घोर निराशा, जो मानव मानस की चिर पहचानी हूँ।
छोटी-सी एक कहानी हूँ।।

मैं स्वाभिमान की अमिट रेख
पद-रज हूँ, फिर भी स्वाभिमान
गर्वीले पंथी का तो प्रिय !
मैं कर देती हूँ बदन म्लान
मैं हीन सब तरह से जग में फिर भी निज गौरव-ज्ञानी हूँ।
छोटी-सी एक कहानी हूँ ।।

गौरव से सिर ऊँचा करना
अभिमान नहीं है जीवन धन !
जग कहता तुम अभिमानी हो
मैं करता हूँ जो सत्य कथन
मैं निश्छल मन से सोच रहा, क्या सचमुच ही अभिमानी हूँ?
छोटी-सी एक कहानी हूँ ।।

मैं यह ज्वाला जिसको न बुझा
पाया, प्रिय सागर का उर भी
मैं अगम अगोचर वह खाई
भर सके न जिसको गिरिवर भी
मैं अविरत बहते नयनों से करता प्रिय की अगवानी हूँ।
छोटी-सी एक कहानी हूँ ।।

मैं गहन अमावस हूँ जिससे
शशि भी छुप जाता है डरकर
तारों की वह पीड़ित छाया
जो करुणा को देती है स्वर
जिसको न करे चुम्बन कोई मैं उस सागर का पानी हूँ।
छोटी-सी एक कहानी हूँ ।।

मैं वह दीपक! आलोक भरा
करता है, जो जलकर तम में
मैं लहर, हहरकर मिट जाती
है जो अपने ही प्रियतम में
मैं नश्वर, किन्तु अनश्वर का भी लघुतम कण अज्ञानी हूँ।
छोटी-सी एक कहानी हूँ ।।

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