पुरवैया का झौंका आया,
नील गगन पर द्वितीया का चन्दा मुसकाया,
मैंने पुछा – “जीवन क्या है ?”
हँसकर बोला —
“पूनम के क्षण आना, बतलाऊँगा !
वक्षस्थल पर संघर्षों के घाव पड़े होंगे, सब दिखलाऊँगा !
यश औ’ कीर्ति सौंपते हैं जीवन को !”
“पर प्रिय ! तुम तो द्वितिया को भी पूजे जाते हो ?”
“द्वितीया जीवन के पथ पर मेरा यह अडिग चरण है
जो अति दृढ है।
अडिग चरण मंजिल को पास बुला लाते हैं,
इसलिए पूजे जाते हैं!
जीवन वह संघर्ष, चाँदनी हो जिससे प्रस्फुटित
ज्योति अपनी फैलाती !”
प्रकृति-नटी ली अँगड़ाई,
सांध्य-परी नभ पर मुसकाई।
अस्ताचल में जाते रवि से पूछा – “जीवन क्या है ?”
हँसकर बोलै —
“कभी उषा के द्वार मुझे मिल जाना, बतलाऊँगा,
दिनभर चलना साथ-साथ
तब समझाऊँगा !
हँसते हुए धरा पर आना,
हों उर में अंगार भरे,
पर औरों पर आलोक लुटाना।
अपने यौवन से सबको आलोकित करना,
अपनी किरणों से सबका सूनापन हरना।
मिटते क्षण भी वह मादक मुसकान लुटाना ,
भू नभ तेरी मृत्यु समय गा उठें तराना।
मृत्यु स्वयं जीवन है, नव जीवन की दात्री !
अच्छा अब मैं चलूँ, तनिक विश्राम करूँगा —
क्योंकि मुझे कल फिर सोया संसार जागना जगाना!
जीवन वह लालिमा, जन्म से मृत्यु समय तक जो बनी रहती है !”
चलते-चलते चरण ले गए सागर तट पर।
गहन नीलिमा फैली दूर क्षितिज तक जाकर।
लहर लहर लहराती —
यौवन की चाँदी इतराती,
जीवन की मस्ती मदमाती,
एक लहर मेरे चरणों से आ टकराई।
मैंने पूछा –“जीवन क्या है ?”
हँसकर बोली – “जीवन ?
जीवन ! लहरों- सा लहराना,
बनना, मिटना, फिर बन जाना !
हँसना, खिलना, शोर मचाना !
सागर या भवसागर की छाती पर जी भर दौड़ लगाना।
‘हम कुछ भी हैं ! अपना भी अस्तित्व सजग है’–
यह बड़ी-बड़ी चट्टानों से जाकर टकराना,
मिले हार पर हार किन्तु जय की आशा में जीते जाना,
फिर अपना अस्तित्व दिखाना,
अपने विजय-पर्व पर मस्ती में कहकहे लगाना,
खुल कर गाना !
जा अब कर विश्राम !
भव-सागर की चलती-फिरती चट्टानों से
अभी बहुत दिन तक तुझको करना होगा संग्राम।
पर कवि !
सागर के तट पर बैठा तू लहरों से पूछे – जीवन क्या है ?
सागर का अपमान !”
प्रश्न किया!
उत्तर में सागर की ममता मुसकाई,
बोली – “जीवन वह गहराई
जिसकी जग ने थाह न पाई,
ऊपर चाहे शांत रहे या ज्वार उठाए,
पर अन्तर में भावों के मोती उपजाए !
विष, मधु दोनों पीकर निज अस्तित्व बनाए,
संचित करे रत्न अनुभव के, रत्नाकर कहलाए !
जा अब कर विश्राम !
तुझे कल भव-सागर की तूफानी लहरों से टक्कर लेनी होगी !
जीवन है जग की लहरों से
करना हास -विलास
जीवन है तूफानों पर भी
बिखराना उल्लास। “
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