पर काट दिए अब कहती हो
उड़ जा इस वन से दीवाने!

पहले क्यों उड़ते पंछी पर
सखि! जाल अनूपम डाला था
फँस गया तुम्हारे फंदो में
पंछी ही भोला था
वह समझा था अमृत के कण
पर वे निकले विष के दाने।

पर काट दिए अब कहती हो
उड़ जा इस वन से दीवाने।।

मैं अपने पथ पर चलता था
तुम अपने पथ पर ले आईं
माना सखि! मेरे मानस की
पीड़ाएँ तुम ने सहलाई
पर अब क्यों कहती हो मुझ से
हट जा इस पथ से मस्ताने।।
पर काट दिए अब कहती हो
उड़ जा इस वन से दीवाने।।

सब संगी साथी छोड़ देवि !
बस साथी तुम्हें बनाया था
केवल इस निर्मम जीवन में
तुम से ही प्रेम निभाया था
सोचा था लम्बा जीवन है
हम हिल-मिल गा लेंगे गाने।
पर काट दिए अब कहती हो
उड़ जा इस वन से दीवाने।।

मैं थका थकाया आता था
सहलाती थीं मेरे तन को
मैं जगती से होता निराश
बहलाती थीं मेरे मन को
कहती थीं मन के मीत ! आज
तुम बने हुए क्यों अनजाने
पर काट दिए अब कहती हो
उड़ जा इस वन से दीवाने।।

बातों-बातों में ही उस दिन
हमने सखि! लड़ने की ठानी
कुछ भाग्य नहीं था ठीक
और कुछ थी दोनों की नादानी
नागिन बन तुम फुफकार उठीं
लग गई तभी विष फैलाने !

पर काट दिए अब कहती हो
उड़ जा इस वन से दीवाने।।

मैं उड़ न सका, मैं चल न सका
मुझ में न रही थी शक्ति देवि
तुम चली गई तुममें न रही थी
मेरे प्रति कुछ भक्ति देवि !
पर पगली बीते जीवन के
कुछ हाल न जग को बतलाने!

पर काट दिए अब कहती हो
उड़ जा इस वन से दीवाने।।

जीवन की धूमिल संध्या में
जब याद तुम्हारी आ जाती
मन कहता प्रतिक्षण सुखी रहे
हो जहाँ कहीं मेरा साथी
तुम मुझ को भूल गई, पर मैं–
क्यों लगा तुम्हें सखि बिसराने

पर काट दिए अब कहती हो
उड़ जा इस वन से दीवाने।।

माना हम दोनों दूर-दूर
माना हम दोनों पास नहीं
माना बिछुड़ों के मिलने को
इस जीवन में विश्वास नहीं
फिर भी सपनों में कभी-कभी
आ जाना मन को बहलाने!

पर काट दिए अब कहती हो
उड़ जा इस वन से दीवाने।।

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