मद-भरी जवानी छाई है,
नव हास रास ले आई है,
वह झूम उठा, पावस ऋतु बनकर आई है साक़ी बाला।
बहता है बरसाती नाला

बह रहा कगारे तोड़ ताड़ ,
सीमा के बन्धन  छोड़ छाड़,
अत्याचारी ने कई सन्निकट गाँवोँ  दल डाला।
बहता है बरसाती नाला

पर जब पावस ऋतु जाएगी,
इसकी मस्ती मिट जायेगी,
तब सोचेगा उज्ज्वल पट के पीछे रहता परदा काला।
बहता है बरसाती नाला

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