मैं उन तारों का आराधक, शोभित जिनसे आकाश रहेगा जीवनभर!

जीवन की काली रातों के सूनेपन में,
चलते हैं दृढ निश्चय लेकर अपने मन में,
डगमग धरती, कम्पित अंबर, हिलते भूधर –
मैं उन युवकों का हमजोली, जीवित जिनसे इतिहास रहेगा जीवनभर।
मैं उन तारों का आराधक, शोभित जिनसे आकाश रहेगा जीवनभर।।

नयनों का नभ रहता मेघों से घिरा-घिरा,
वह मेघ नयन की सीपी में बनते मदिरा,
उस मदिरा का बेहोश न होश कभी पाता –
चिर मुखर व्यक्ति की भी मूक गिरा
मैं उन नयनों का अभिलाषी, रक्षित जिनसे उल्लास रहेगा जीवनभर।
मैं उन तारों का आराधक, शोभित जिनसे आकाश रहेगा जीवनभर।।

झर झर कर निर्झर अपनी मस्ती में बहते,
हम पत्थर के उर की करुणा जग से कहते,
प्रिय! इसीलिए जग पत्थर पूजा करता है –
पत्थर-सी दृढ़ता पा ले दुख सहते-सहते।
मैं उन झरनों का चिरसहचर, मुखरित जिनसे विश्वास रहेगा जीवनभर।
मैं उन तारों का आराधक, शोभित जिनसे आकाश रहेगा जीवनभर।।

उस दिन कवि को कविता का वरदान मिला,
कविता के हित में, मधुवन में मादक पुष्प खिला,
कोयल कुहकी, भ्रमरों ने मंगलगान किये
कलियों को कवि को प्यार दिया मधु पिला -पिला
मैं उन कवियों का हमराही, मुखरित जिनसे मृदु हास रहेगा जीवनभर।
मैं उन तारों का आराधक, शोभित जिनसे आकाश रहेगा जीवनभर।।

अल्हड़ गायक ने अपनी वाणी लहराई,
वीणा की थिरकन पर मधुऋतु दौड़ी आई,
भावों के शत-शत दीप जगे, आलोक हुआ,
युग-युग की भीषण गहन तमिस्त्रा अकुलाई।
मैं ऐसे गायक का प्रेमी, पुष्पित जिससे मधुमास रहेगा जीवनभर।
मैं उन तारों का आराधक, शोभित जिनसे आकाश रहेगा जीवनभर।।

तू विरही, फिर भी प्रेमी तुझे बताते हैं,
प्रिय! क्यों तेरे आँसू मोती कहलाते हैं ?
क्या  कहते हो ! वह आँसू, आँसू नहीं सखे,
जो औरों का दुःख देख बहाए जाते हैं !
है धन्य चन्द्र, जिसके द्वारा,आलोकित प्रणय आकाश रहेगा जीवनभर।
मैं उन तारों का आराधक, शोभित जिनसे आकाश रहेगा जीवनभर।।

मुझको है केवल अपने पर संतोष यही,
मेरी स्वर-लहरी मानवता की मीत रही,
मुझसे जिस दिन मेरा निर्माता पूछेगा-
रख दूँगा सम्मुख, लेखा-जोखा सही-सही।
प्रिय! मेरे गीतों को पढ़कर, मानव मानव के पास रहेगा जीवनभर।
मैं उन तारों का आराधक, शोभित जिनसे आकाश रहेगा जीवनभर।।

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