गले में डाल हमारे व्याल!
शत्रु ने चल दी ऐसी चाल।।
हमारा सुन्दर श्यामल देश।
हमारे लिए बना परदेस।।
यहाँ की अति सुन्दर माटी।
जिन्दगी जिसमें मिल काटी।।
नहीं उसको कर सकते प्यार।
नहीं अब उस पर कुछ अधिकार।।
जहाँ कल तक था, अपना राज।
वहाँ पर बन्दी है हम आज।।
गए उस क्षण हम भी कुछ चूक।।
देश के करवाए दो टूक।।
हमारा प्यारा भारतवर्ष।
थक गया है कर-कर संघर्ष।।
निकल उसमें से पाकिस्तान।
डस रहा उसकी ही सन्तान।।
हुए अति भीषण अत्याचार।
बह चली प्रबल रक्त की धार।।
रहें हिन्दू यह मन की साध।
शत्रु ने समझी अति अपराध।।
अग्नि दहकी जब चारों ओर।
मच गया ग्राम-ग्राम में शोर।।
बचा लेने को अपने प्राण।
चल दिए हिन्दू हिन्दुस्तान।।
शत्रु ने पथ में किए प्रहार।
निहत्थों पर कितनी ही बार।।
जा रहे हैं हम हिन्दुस्तान।
सुनेगें आज़ादी का गान।।
यकायक गाड़ी क्योंकर मन्द।
हुई शंका फिर अंतर्द्वन्द
यहाँ है पाकिस्तानी राज।
किसी का कुछ भी नहीं लिहाज।।
सामने है यह ‘गुज्जार खान‘‘।
सुशस्त्रों से सज्जित बलवान।।
विदाई का देने को प्यार।
खड़े हैं लेकर के उपहार।
इधर हम हिंदुस्तानी वीर।
न कटि में खडग, न कर में तीर ।।
साथ में माँ बहनों की लाज।
साथ में उजड़ा हुआ समाज।।
साथ में पुरूखाओं की याद।
साथ में यौवन का उन्माद।।
लोचनों में लेकर अंगार।
सँभाले हमने भी हथियार।।
गँवाएँगे हँस-हँस कर प्राण।
न माँगेगे जीवन का दान।।
कायरों से जीवन का दान।
न माँगेगी मनु की सन्तान।।
उधर के सबल बिलोची वीर।
हमारा रक्त समझकर नीर।।
लगे बरसाने हम पर आग।
सहे हमने छाती पर दाग।।
निकलकर कुछ डोगरे जवान।
सिंह-सी अपनी छाती तान।।
स्टेन गन‘ सुदृढ़ करों में थाम।
व्यंग से रिपु को किया सलाम।।
चली गोली गूंजा आकाश।
उछलकर गिरी लाश पर लाश।।
शत्रु के भूल गए औसान।
हट गया वह पीछे भय मान।।
रक्त से धरणि हो गई लाल।
रक्त पहुँचा होगा पाताल।।
गगन में सोच रहा था चाँद
मनुष का यह कैसा उन्माद।।
चली गाड़ी गाती संगीत।
चले हम खोकर सुन्दर मीत।।
रूकी आकर झेलम के पास।
शत्रु ने रोकी देकर त्रास।।
किया हमने पहले ही वार।
किसी से हम क्यों करें उधार।।
‘वितस्ता‘ बहती थी मदमस्त।
लहरियाँ थीं अपने में व्यस्त।।
किया हम सबने उसे प्रणाम।
नहीं भूलेंगे वह मधुयाम।।
याद कर सुन्दर सुखद अतीत।
बह रही थी वह गाती गीत।।
इसी तट पर आक्रान्ता वीर।
गिरे थे खाकर जिनके तीर।।
उन्हीं रणधीरों की सन्तान।
उन्हीं प्रणवीरों की सन्तान।।
जा रही जन्मभूमि को छोड़।
युगों की प्रीत पुरातन तोड़।।
भूमि के कणकण में अवसाद।
रहेगी सदा तुम्हारी याद।।
विदा की बेला बहुत उदास।
दिलाया हमने यह विश्वास।।
शीघ्र आएँगे तेरे तीर।
पिएँगे मधुर क्षीर-सा नीर।।
शून्य में करती गाड़ी शोर।
जा रही थी जाने किस ओर।।
चन्द्रभागा तजकर किल्लोल।
विरह के बोल रही थी बोल।।
कौन! रूठेगा अब इस तीर।
मनाएगा हो कौन अधीर।।
कौन तजकर जीवन की आश।
पहुँच पाएगा प्रिय के पास।।
छोड़कर अपना प्यारा गेह।
तोड़कर युगों युगों का नेह।।
चले क्या तुम ? सचमुच ही वीर।
नहीं अब आवोगे इस तीर।।
खिले खेलें हम जिसके कूल।
जाएँगे कैसे उसको भूल।।
विदा की बेला बहुत उदास।
दिलाया हमने यह विश्वास।।
शीघ्र आएँगे गाते गीत।
साथ लाएँगे सुघड़ अतीत।।
हृदय में उठती थी यह हूक।
हाय कर बैठे कैसी चूक।।
हटाकार पीछे खूनी रात।
हवा से करती गाड़ी बात।।
रूकी पथ में कितने ही ठोर।
तब कहीं आ पाया ‘लाहौर‘।।
लिए उर में अनन्त तूफ़ान।
किए अपना सुन्दर जल म्लान।
सोचती थी राबी हो मौन।
इन्हें निर्वासित करता कौन।।
वीरवर लव-कुश की सन्तान।
प्रबल यौद्धा खालसा जवान।।
जा रहे तजकर अपनी शान।
भूलकर सुन्दर सुखकर गान।।
तुम्हारा मैं लूँगी प्रतिशोध।
शक्ति किसमें जो करे विरोध।।
एक कर डालूँगी घर घाट।
मिटा दूँगी दुश्मन के ठाट।।
शीघ्र आना फिर तुम भी मीत।
सुनाते मोहक मादक गीत।।
हृदय उस क्षण अति हुआ अधीर।
लोचनों में भर आया नीर।।
विदा की बेला बहुत उदास।
दिलाया हमने यह विश्वास।।
बिताकर अपना सुखद प्रवास।
शीघ्र आएँगे तेरे पास।।
भुलाएँगे कैसे लाहौर।
सुखद सुन्दर प्यारा लाहौर।।
चली फिर गाड़ी गाती गान।
आ गया प्यारा हिन्दुस्तान।।
‘व्यास‘ को लेकर अपने साथ।
स्नेह से डाल हाथ में हाथ।।
कह रहा था ‘शतद्रु‘ गम्भीर।
तुम्हारा स्वागत भारत वीर।।
शीघ्र कर लो कुछ क्षण विश्राम।
नहीं फिर जीवन में आराम।।
अधखिली आजादी के नाम।
तुम्हें करना होगा संग्राम।।
तुम्हें लौटाने होंगे वीर।
शत्रु से खाये हैं जो तीर।।
एक करने को भारतवर्ष।
तुम्हें ही करना है संघर्ष।।
नहीं है कृष्ण, नहीं है राम।
नहीं अब चन्द्रगुप्त बलधाम।।
नहीं अब वह चाणक्य महान।
देखकर जिसकी भृकुटि कमान।।
शत्रु के हिल जाते थे प्राण।
माँगता था जीवन का दान।।
करो जाओ जाकर आराम।
सुघड़ मेरे बनवासी राम।।
तुम्हीं में होंगे अगणित राम।
और गोवर्धनधारी श्याम।।
शत्रु का गर्व करें जो चूर।
प्रतापी चन्द्रगुप्त बलधाम।
देश का रूप देश का राज।
तुम्हीं पर ही केन्द्रित है आज।।
किया हम सबने उसे प्रणाम।
बहो तुम युग युग तक अविराम।।
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