हाथ पर तेरे नियति ने खींच एक लकीर
बाँध दी तेरे सुदृढ़ पग में प्रबल जंजीर

देख रेखा ज्योतिषी ने कह दिया तत्काल
तू भिखारी ही रहेगा लिखा तेरे भाल
सिर झुका तूने नियति की मान ली यह बात
स्वयं ही मुर्झा गया तेरा हृदय जलजात
शक्ति, क्षमता और साहस की सृजनता भूल
बह चला फिर तू समय की धार के अनुकूल
है तुझे विश्वास जागेगी कभी तक़दीर
टूट जाएगी स्वयं ही पाँव की जंजीर।

हाथ की रेखा निहारी बन नियति का दास
क्यों न निज भुजदंड देखे ले अमित विश्वास
क्यों न मन परखा उमंगो की जहाँ है भीड़
अगर चाहे नील नभ पर भी बना दे नीड़
कर रहा है क्यों प्रखरतम बुद्धि का उपहास
जो अगर चाहे गगन को खींच लाए पास
बुद्धिबल से तोड़ तू तकदीर की प्राचीर
बाहुबल से तू उगा मोती, धरणि उर चीर।

हाथ की रेखा मिटा दे पकड़ आज कुदाल
तू झुका दे इन हठीले पर्वतों के भाल
बैठ साहस की तरी पर विहंस सागर माप
और निज चंचल पगों से सकल धारणी  नाप
रहम के जल से नहीं बुझती किसी की प्यास
बिन परिश्रम के नहीं मिलता कभी उल्लास
मत व्यथा अपनी सुना तू, हर पराई पीर
और तेरी पीर तेरे हित बनेगी तीर।

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