1947-lahoreयह वही शहर लाहौर, जिसे पेरिस बतलाया जाता।
यह वही शहर लाहौर, रूप का सिंधु जहाँ लहराता।
जिसने काटी है शान्ति-काल की साँझ यहाँ पर आकर।
वह मरना चाहे, मर न सकेगा इसकी याद भुला कर।

इसका लारेन्स-गार्डन नन्दन वन क्या जिसके आगे,
देखा न जिन्होंने उसे विश्व में सचमुच रहे अभागे,
आतीं प्रभात में यहाँ काम की मस्त कलाएँ,
देखें यदि उन्हें कहीं परदेशी पागल ही हो जाएँ।

अपना क्या, अपना काम यहाँ पर रहना, हँसना, खिलना
जो मिलें अपिरिचित, सबसे बड़े प्यार से मिलना
हर युवा हृदय की चाह, ग्रीष्म की संध्या यहाँ बिताऊँ
हर युवा हृदय की चाह, किसी के साथ घूमने जाऊँ।

यह माल रोड़, इस माल रोड़ पर बिखरी हुई जवानी
मानव क्या ? सचमुच देवों के मुँह में भर आये पानी,
है उसी तरह की साँझ, किन्तु छाया कितना सूनापन
लगता है हरण कर लिया आज किसी ने जीवन।

लारेन्स-गार्डन में खिलकर हैं फूल स्वयं मुरझाते,
अब उन्हें तोड़ने नहीं गुलाबी हाथ किसी के आते
बजने वाले हैं सात, चल पड़ा हूँ मैं चरण संभाले,
इसलिए कि सबको पड़े हुए हैं यहाँ जान के लाले।

जिनसे मुझको भय, मुझ से वह भयभीत नजर आते हैं
मैं जिनसे बचकर चलता, मुझसे वह बचकर जाते हैं।
यह देख अधर पर अब भी खिंच आती है स्मित की रेखा
इतना विश्वास रहित जीवन तो पहले कभी न देखा।

कुछ ज्ञात नहीं, कब फूल सुघड़तम मिट्टी में मिल जाए,
कुछ ज्ञात नहीं कब हाथ किसी का मेरा गला दबाए,
अब बीस मिनिट हैं सिर्फ यहाँ पर कर्फ्यू के आने में,
यह बीस मिनिट है मिले नीड़ तक पंछी को जाने में।

यह वह अनार की कली सजी जो नई बहू -सी रहती
यह वह अनार की कली जहाँ पर वायु सुगन्धित बहती
मैंने देखे हैं यहाँ तितलियों के दल आते जाते
मैंने देखे हैं यहाँ युवक-दल भंवरों से मंडराते।

रहती है इतनी भीड़, भीड़ से मेरा मन घबराता
मैं क़ाफीहाउस सदा दूसरे रास्ते से हूँ जाता
अब यह अनार की कली, लग रही जैसे विधवा कोई
खोकर उन्मत्त जवानी कोई सुघर भिखारिन सोई।

बस इसी समय घूमने निकलती थी मित्रों की टोली
वह मुग्ध हास-परिहास, व्यंग्य से भीगी हुई ठठोली
कितना सस्ता साधन था इस जीवन को बहलाने का
अब वही समय है गृह में आकर बन्दी हो जाने का।

फिरते थे ग्यारह बजे कभी लारेन्स-गार्डन जाकर
अब दस बजने से पहले सो जाते हैं रोटी खाकर
कल बोला मुझ से मित्र यहाँ से ऊब रहा है जीवन
मुझको भी अनुभव हुआ यहाँ अब नहीं लग रहा है मन

यह वही शहर लाहौर जहाँ पर जीवन मुस्काता था
यह वही शहर लाहौर देखने चाँद ठहर जाता था।
मेरे प्यारे लाहौर विदा, अब भेंट न होगी तुझसे।
मेरा भविष्य तेरी गाथा अक्सर पूछेगा मुझसे।।

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