उपेक्षा के शरों से बींध दो उनको–
सजनि ! कर व्यंग्य जिनका काम मुस्काना।।
जवानी, साथ है फिर रूप, क्या कहने,
पड़ेंगे विश्व के ताने हमें सहने,
बिना माँगे कई उपनाम आयेंगे
तुम्हे पगली, मुझे मदमस्त दीवाना
सूरा तो व्यर्थ में बदनाम है रंगिनी !
जवानी का नशा उद्दाम है रंगिनी !
जवानी यदि शुभे ! सचमुच जवानी है —
नहीं संभव किसी का होश में आना।।
जवानी पर सभी लांछन लगते हैं,
जवानी बीतते ही भूल जाते है।
कभी वे भी बहुत उन्मत्त थे मधुरे !
कि जिनका काम हमको आज समझाना।।
उन्हीं को रूप से चिढ़ आज है रानी,
सभा में रूप की जो भर चुके पानी,
रहे जो प्यार की कसमें बहुत खाते–
वही अब खीझते सुन प्यार का गाना।।
नहीं, अब चाँदनी उनको तनिक भाती,
कली भी शूल बन, उनको चुभी जाती,
पपीहे के लिए वह हो चुके बहरे
मिटा दें चाँद को, सम्भव न कर पाना।।
किसी की याद में जो खुद नहीं सोये,
जमाने को बहुत कोसा, बहुत रोयें,
विवशता ने बना डाला उन्हें ज्ञानी–
जिन्होंने स्वयं को अबतक न पहचाना।।
जवानी वचन देगी तो निभायेगी,
मिटेगी पर न पग पीछे हटायेगी,
जवानी औ’ बुढ़ापे में यही अन्तर —
जवानी ने कभी बंधन नहीं माना ।।
जवानी जिस किसी पर भी कभी आई,
उमंगो की घटायें साथ ही लाई,
पुण्य से पाप यूँ बोला– चलो साथी–
जवानी को बहुत ही कठिन बहकना ।।
——–