एक दिन प्रिय पाहुना आया तुम्हारे द्वार

जा चुकी थी साँझ अपने देवता के देश
दे चुकी थी, प्यार का प्रिय को मधुर संदेश
राह रपटीली, अंधेरे से रही थी खेल–
थकित पंथी कर रहा था पगों की मनुहार।
एक दिन प्रिय पाहुना आया तुम्हारे द्वार।।

तुम सलौने नीड़ में बैठी हुई चुपचाप,
सुन रही थीं, काल्पनिक प्रिय की सुखद पदचाप
साधना में लीन, मादक भावना में मौन–
आ, किसी ने खटखटाया, प्यार का संसार।
एक दिन प्रिय पाहुना आया तुम्हारे द्वार।।

धरणि-अम्बर एक करती थी प्रबल बरसात
काँपता था विश्व, इतनी भयभरी थी रात
एक सुन्दर पथिक का था थरथराता गात–
खोल तुमने द्वार, पाया प्यार का आधार।
एक दिन प्रिय पाहुना आया तुम्हारे द्वार।।

वह तुम्हारा, ले सहारा, हो गया था मौन
पूछती थी हृदय की धड़कन तुम्हें, यह कौन
सोचतीं सी तुम, जलाती जा रही थीं आग–
चेतना देकर हँसे, जलते हुए अंगार।
एक दिन प्रिय पाहुना आया तुम्हारे द्वार।।
सो गया राही, खिलाकर मृदु हँसी के फूल
फूल वे तुम को चुभे, बनकर नशीले शूल
सोचतीं थीं तुम, कहाँ से आ गया चितचोर–
तुम रहीं निशि भर हृदय की बनी पहरेदार।
एक दिन प्रिय पाहुना आया तुम्हारे द्वार।।

रात भर खग कर चुका था नीड़ में विश्राम
प्रात आया, साथ में लाया, विदा का याम
सिर झुका, पग चल दिए, कह लोचनों से बात–
वह गया, पर दे गया तुमको व्यथा का भार।
एक दिन प्रिय पाहुना आया तुम्हारे द्वार।।

मिल गया तुमको तुम्हारी कल्पना का मीत
हो गया सुरभित तुम्हारी वेदना का गीत
जो रहे अक्षय युगों तक, बन किसी की याद
मिल गया तुमको, सजीले मोतियों का हार।
एक दिन प्रिय पाहुना आया तुम्हारे द्वार।।

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