शक्ति है तुममें मुझे अपना बनाने की
मैं विहग, जिसने गगन की वीथियाँ घूमीं,
बादलों में रह हठीली बिजलियाँ चूमीं,
प्रलय भी देखि, प्रबल हिम–पात भी देखे—
शक्ति है तुममें मुझे भू पर बुलाने की !
शक्ति है तुममें मुझे अपना बनाने की।।
नीड़ में रहना मुझे बिलकुल नहीं भाया,
क्योंकि जग में मैं किसी का बन नहीं पाया,|
शक्ति है तुममें मधुर मुस्कान की रानीं—
चिर युगों के मौन पाहुन को रिझाने की !
शक्ति है तुममें मुझे अपना बनाने की।।
चाँद–तारों का शिकारी हूँ, पुजारी हूँ,
प्रकृति के इस वक्ष पर निर्जन विहारी हूँ,
है लगन तुम में मुझे अपना बनाने की —
चाँद–तारों की नई बस्ती बसाने की !
शक्ति है तुममें मुझे अपना बनाने की।।
मैं नियति, भगवान दोनों से रहा रूठा
छल रहे हैं यह मनुज को रौब दे झूठा,
पंगु दुनिया से न मेरी निभ कभी पाई —
है बहुत क्षमता मगर तुम में निभाने की !
शक्ति है तुममें मुझे अपना बनाने की।।
रूप देखा, रूप का संसार भी देखा,
रूप वालों का घिनौना प्यार भी देखा
अति मधुर मुस्कान अधरों पर सुखा डाली —
है तुम्हें चिन्ता उसे फिर से जिलाने की !
शक्ति है तुममें मुझे अपना बनाने की।।
नीड़ के निर्माण में सहयोग दूँगा,
प्यार का तुमको नशीला रोग मैं दूँगा,
साधना की शक्ति लेकर भक्ति की प्रतिमे—
है तुम्हारी चाह पत्थर को गलाने की !
शक्ति है तुममें मुझे अपना बनाने की।।
यदि मुझे फिर गगन की लहरें बुलायेंगी,
बिजलियाँ भी कर इशारे मुस्करायेंगी,
सह सकूँगा किस तरह प्रिय मान मैं उनका —
लौटने पर क्या सजा दोगी रुलाने की ?
शक्ति है तुममें मुझे अपना बनाने की।।
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