भारत के अन्तर की करूणा, अभिनव संन्यासी,
तेरे स्वागत को तत्पर हैं सभी देशवासी !
“भूमिदान दो, भूमिदान दो” – यह मादक वाणी
सुनकर सिहर उठी मानव की ममता कल्याणी
तुम दरिद्रनारायण के हित वामन बन करके-
खोज रहे हो डगर-डगर में बलि-से विश्वासी।
जिनके पास नहीं है उनके लिए दान लेने
आये हो, युग के रवि बन नूतन विहान देने
मानव-मानव सब समान हैं,सब भाई-भाई-
मानवता की ज्योति जल रही है बन अविनाशी ।
धरती नहीं एक की, धरती सबकी माता है
यही प्रबल संघर्ष युगों से चलता आता है।
भूमिदान का यज्ञ कर रहे हो तुम ऋषि-ज्ञानी –
विषम परिस्थितियों को सम करने के अभिलाषी
शत-शत है प्रणाम तुमको हे मानव मृदुभाषी !
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