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रावण से चार भेंट
एक दिवस काफ़ी हाउस में, पहुँचा मैं, बैठा, सिगरेट सुलगाई। तभी दृष्टि पड़ गई, पास बैठे मानव पर, क़ाफी के घूंटों से अपना शुष्क गला करते तर, मैं पहचान गया– युग पंडित अपना शीश झुकाये, सोच रहे थे चिंता में डूबे, सहमे, सकुचाये। छद्म वेश में रावण थे वह। मैने Read more…