कविता संग्रह
सेनानी सुभाष
स्वातंत्र्य पंथ के अमर पथिक, योद्धा, मृत्युंजय सेनानी। युग-युग की परवशता के प्रति तुमने रण करने की ठानी ।। तुम देख चुके थे जीवन में निज जन्म भूमि की बरबादी, तुम समझ चुके थे, माँगे Read more…
स्वातंत्र्य पंथ के अमर पथिक, योद्धा, मृत्युंजय सेनानी। युग-युग की परवशता के प्रति तुमने रण करने की ठानी ।। तुम देख चुके थे जीवन में निज जन्म भूमि की बरबादी, तुम समझ चुके थे, माँगे Read more…
भारत के अन्तर की करूणा, अभिनव संन्यासी, तेरे स्वागत को तत्पर हैं सभी देशवासी ! “भूमिदान दो, भूमिदान दो” – यह मादक वाणी सुनकर सिहर उठी मानव की ममता कल्याणी तुम दरिद्रनारायण के हित वामन Read more…
चीन की जनता तुम्हारी विवशता मैं जानता हूँ। इसलिए ही तो तुम्हारे नाम पाती लिख रहा हूँ । पढ़ रहा हूँ काव्य का सोपान ऐसा गढ़ रहा हूँ। भाव मेरे पहुँच पाऐं आज तुम तक Read more…
एक दिवस काफ़ी हाउस में, पहुँचा मैं, बैठा, सिगरेट सुलगाई। तभी दृष्टि पड़ गई, पास बैठे मानव पर, क़ाफी के घूंटों से अपना शुष्क गला करते तर, मैं पहचान गया– युग पंडित अपना शीश झुकाये, Read more…
शक्ति है तुममें मुझे अपना बनाने की मैं विहग, जिसने गगन की वीथियाँ घूमीं, बादलों में रह हठीली बिजलियाँ चूमीं, प्रलय भी देखि, प्रबल हिम–पात भी देखे— शक्ति है तुममें मुझे भू पर बुलाने की Read more…
यह कैसा कोलाहल, कैसा कुहराम मचा ! है शोर डालता कौन आज सीमाओं पर ? यह कौन हठी जो आज उठाना चाह रहा हिम मंडित प्रहरी अपनी क्षुद्र भुजाओं पर ? मैं – भारत माँ Read more…
देश मेरे ! जिन्दगी के आज इस अन्तिम प्रहर में लिख रहा हूँ डायरी के पृष्ठ कुछ जो वचन तुझको दिया था, वह निभाया है प्राणपण से आज तेरा ऋण चुकाया है ! अटकते से Read more…
अति भला होता अगर ईश्वर तुम्हें पत्थर बनाता समय पर तू शत्रु का सिर फोड़ने के काम आता हाय! तेरी माँ न शठ ! क्योंकर तुझे पहिचान पाई ? जन्मते ही जो न उसने, विषभरी Read more…
एकता बोली–सुनो कवि ! चाहते हो यदि विजय आकर तुम्हारा पथ बुहारे। चाहते हो यदि पराजित शत्रु चरणों को पखारे। राष्ट्र के हर व्यक्ति से कह दो करे सम्मान मेरा मैं तुम्हारे राष्ट्र के हर Read more…
हाथ पर तेरे नियति ने खींच एक लकीर बाँध दी तेरे सुदृढ़ पग में प्रबल जंजीर देख रेखा ज्योतिषी ने कह दिया तत्काल तू भिखारी ही रहेगा लिखा तेरे भाल सिर झुका तूने नियति की Read more…
हल्दी घाटी की साँझ गुँजाती चली शब्द यह बार-बार। ओ नीला घोड़ा रा सवार, ओ नीला घोड़ा रा सवार। उस नीले घोड़े का सवार, राणा प्रताप योद्धा मानी हल्दी घाटी के महा समर का प्रबल Read more…
आज़ादी मिल गई, किन्तु आज़ादी का जाने प्रिय ! क्योंकर होता आभास नहीं दे अगणित बलिदान मिली यह आज़ादी फिर भी पीड़ा भरी हुई है जीवन में और विवशताँए जीवन की उसी तरह उमड़ घुमड़ Read more…
गले में डाल हमारे व्याल! शत्रु ने चल दी ऐसी चाल।। हमारा सुन्दर श्यामल देश। हमारे लिए बना परदेस।। यहाँ की अति सुन्दर माटी। जिन्दगी जिसमें मिल काटी।। नहीं उसको कर सकते प्यार। नहीं अब Read more…
यह वही शहर लाहौर, जिसे पेरिस बतलाया जाता। यह वही शहर लाहौर, रूप का सिंधु जहाँ लहराता। जिसने काटी है शान्ति-काल की साँझ यहाँ पर आकर। वह मरना चाहे, मर न सकेगा इसकी याद भुला Read more…
हो जहाँ पर भी वहीँ पढ़ना इसे तुम लिख रहा हूँ मैं तुम्हारे नाम पाती बहुत दिन सोचा, तुम्हारे वक्ष के नीचे दबा इन्सान का दिल, स्वयं ही तुमसे कर कुछ बात शायद औ’ तुम्हारा Read more…
मैं लघु पंछी उड़ने वाला, पकड़ोगे पंख जला दोगे, यह मत समझो! मैं नवल कली हूँ उपवन की, मसलोगे धूल मिला दोगे, यह मत समझो! मैं नन्ही पतली दीप शिखा, मारोगे फूँक बुझा दोगे। यह Read more…
सरस्वती के वरद -पुत्र का जीना मुश्किल क्योंकि कला पर राजनीति छाई जाती है। कलाकार क्या सोच रहे हो शीश झुका कर ? पत्नी है क्षय की रोगी, बच्चा शैया पर। भरा है तुम्हारे जीवन Read more…
मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या- अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाए।। अम्बर पर जितने तारे, उतने वर्षों से, मेरे पुरखों ने धरती का रूप संवारा। धरती को सुन्दरतम करने को ममता Read more…
एक मित्र का पत्र गाँव से कल आया है, लिखता है: ‘तुम भारत के दिल में रहते हो, यौवन की सरिता में अंगडाई लेते हो, जीवन की उद्दाम तरंगों में बहते हो । सचमुच भारत Read more…
पुरवैया के नूपुर बजते छूम छनन छन,छन छन। दशों दिशायें स्वर धाराएँ, बिखरने को उन्मन।। नर्तन करती पुरवैया के पग की थिरकन पाकर मत्त मयूरा कुहका अगणित अर्ध चन्द्र फैलाकर अलसाई सी प्रकृति नटी ने Read more…
एक दिन प्रिय पाहुना आया तुम्हारे द्वार जा चुकी थी साँझ अपने देवता के देश दे चुकी थी, प्यार का प्रिय को मधुर संदेश राह रपटीली, अंधेरे से रही थी खेल– थकित पंथी कर रहा Read more…