हल्दी घाटी की साँझ

हल्दी घाटी की साँझ गुँजाती चली शब्द यह बार-बार। ओ नीला घोड़ा रा सवार, ओ नीला घोड़ा रा सवार। उस नीले घोड़े का सवार, राणा प्रताप योद्धा मानी हल्दी घाटी के महा समर का प्रबल प्रतापी सेनानी उसकी हुंकारों से नभ हिलता था, धरती शर्माती थी उसकी बाँहों की छाया Read more…

आज़ादी मिल गई, किन्तु

आज़ादी मिल गई, किन्तु आज़ादी का जाने प्रिय ! क्योंकर होता आभास नहीं दे अगणित बलिदान मिली यह आज़ादी फिर भी पीड़ा भरी हुई है जीवन में और विवशताँए जीवन की उसी तरह उमड़ घुमड़ कर घूम रहीं मानव मन में छलिया, कपटी अब भी बने हुए ठाकुर मानव से Read more…

हमारा सुन्दर श्यामल देश, हमारे लिए बना परदेस

गले में डाल हमारे व्याल! शत्रु ने चल दी ऐसी चाल।। हमारा सुन्दर श्यामल देश। हमारे लिए बना परदेस।। यहाँ की अति सुन्दर माटी। जिन्दगी जिसमें मिल काटी।। नहीं उसको कर सकते प्यार। नहीं अब उस पर कुछ अधिकार।। जहाँ कल तक था, अपना राज। वहाँ पर बन्दी है हम Read more…

1947-lahore

1947 का लाहौर

यह वही शहर लाहौर, जिसे पेरिस बतलाया जाता। यह वही शहर लाहौर, रूप का सिंधु जहाँ लहराता। जिसने काटी है शान्ति-काल की साँझ यहाँ पर आकर। वह मरना चाहे, मर न सकेगा इसकी याद भुला कर। इसका लारेन्स-गार्डन नन्दन वन क्या जिसके आगे, देखा न जिन्होंने उसे विश्व में सचमुच Read more…

चोर कवि के नाम पाती

हो जहाँ पर भी वहीँ पढ़ना इसे तुम लिख रहा हूँ मैं तुम्हारे नाम पाती बहुत दिन सोचा, तुम्हारे वक्ष के नीचे दबा इन्सान का दिल, स्वयं ही तुमसे कर कुछ बात शायद औ’ तुम्हारा हाथ, खुद ही दे सजा तुमको, तुम्हारे गाल पर कसकर लगाए एक चाँटा ! बात Read more…

यह मत समझो!

मैं लघु पंछी उड़ने वाला, पकड़ोगे पंख जला दोगे, यह मत समझो! मैं नवल कली हूँ उपवन की, मसलोगे धूल मिला दोगे, यह मत समझो! मैं नन्ही पतली दीप शिखा, मारोगे फूँक बुझा दोगे। यह मत समझो! मैं कच्ची मिट्टी हूँ जिसको पानी में डाल गला दोगे, यह मत समझो! Read more…

कला और राजनीति

सरस्वती के वरद -पुत्र का जीना मुश्किल क्योंकि कला पर राजनीति छाई जाती है। कलाकार क्या सोच रहे हो शीश झुका कर ? पत्नी है क्षय की रोगी, बच्चा शैया पर। भरा है तुम्हारे जीवन में क्रन्दन-ही क्रन्दन व्यर्थ कला के लिए मिटाया अपना जीवन। व्यर्थ पुस्तकें लिख-लिख भरते हो Read more…

मजदूर

मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या- अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाए।। अम्बर पर जितने तारे, उतने वर्षों से, मेरे पुरखों ने धरती का रूप संवारा। धरती को सुन्दरतम करने को ममता  में, बिता चुका है कई पीढ़ियाँ वंश हमारा।। और अभी आगे आने वाली सदियों में, Read more…

यह शहरी सभ्यता तमाशा कठपुतली का

एक मित्र का पत्र गाँव से कल आया है, लिखता है: ‘तुम भारत के दिल में रहते हो, यौवन की सरिता में अंगडाई लेते हो, जीवन की उद्दाम तरंगों में बहते हो । सचमुच भारत का दिल ही तो है यह दिल्ली, राग-रंग से भरी, भाव-मुक्ताओं वाली, अपनी मादक गंध Read more…

पुरवैया के नूपुर बजते . . .

पुरवैया के नूपुर बजते छूम छनन छन,छन छन। दशों दिशायें स्वर धाराएँ, बिखरने को उन्मन।। नर्तन करती पुरवैया के पग की थिरकन पाकर मत्त मयूरा कुहका अगणित अर्ध चन्द्र फैलाकर अलसाई सी प्रकृति नटी ने भी फिर ली अंगड़ाई प्रिय दर्शन कर मानो कोई वैरागिन बौराई नन्ही नन्ही बुँदिया बरसीं Read more…