सेनानी सुभाष

सेनानी सुभाष

स्वातंत्र्य पंथ के अमर पथिक, योद्धा, मृत्युंजय सेनानी। युग-युग की परवशता के प्रति तुमने रण करने की ठानी ।। तुम देख चुके थे जीवन में निज जन्म भूमि की बरबादी, तुम समझ चुके थे, माँगे से मिलती न कभी भी आजादी अपने युग के नेताओं के सिद्धान्त नहीं तुमने माने, Read more…

आचार्य विनोबा भावे

आचार्य विनोबा

भारत के अन्तर की करूणा, अभिनव संन्यासी, तेरे स्वागत को तत्पर हैं सभी देशवासी ! “भूमिदान दो, भूमिदान दो” – यह मादक वाणी सुनकर सिहर उठी मानव की ममता कल्याणी तुम दरिद्रनारायण के हित वामन बन करके- खोज रहे हो डगर-डगर में बलि-से विश्वासी। जिनके पास नहीं है उनके लिए Read more…

चीन की जनता के नाम पाती

चीन की जनता के नाम पाती

चीन की जनता तुम्हारी विवशता मैं जानता हूँ। इसलिए ही तो तुम्हारे नाम पाती लिख रहा हूँ । पढ़ रहा हूँ काव्य का सोपान ऐसा गढ़ रहा हूँ। भाव मेरे पहुँच पाऐं आज तुम तक लौह की प्राचीर में जकड़ी हुई तुम आज अपने जाल में उलझी हुई- मकड़ी सरीखी Read more…

रावण से चार भेंट

रावण से चार भेंट

एक दिवस काफ़ी हाउस में, पहुँचा मैं, बैठा, सिगरेट सुलगाई। तभी दृष्टि पड़ गई, पास बैठे मानव पर, क़ाफी के घूंटों से अपना शुष्क गला करते तर, मैं पहचान गया– युग पंडित अपना शीश झुकाये, सोच रहे थे चिंता में डूबे, सहमे, सकुचाये। छद्म वेश में रावण थे वह। मैने Read more…

शक्ति है तुममें

शक्ति है तुममें मुझे अपना बनाने की  मैं विहग, जिसने गगन की वीथियाँ घूमीं, बादलों में रह हठीली बिजलियाँ चूमीं, प्रलय भी देखि, प्रबल हिम–पात भी देखे— शक्ति है तुममें मुझे भू पर बुलाने की ! शक्ति है तुममें मुझे अपना बनाने की।। नीड़ में रहना मुझे बिलकुल नहीं भाया, Read more…

भारत माँ की लोरी

यह कैसा कोलाहल, कैसा कुहराम मचा ! है शोर डालता कौन आज सीमाओं पर ? यह कौन हठी जो आज उठाना चाह रहा हिम मंडित प्रहरी अपनी क्षुद्र भुजाओं पर ? मैं – भारत माँ – अपने आँगन में बैठ, सुनाती हूँ लोरी, निज नन्ही-मुन्नी फसलों को सहलाती हूँ, जीवन Read more…

सैनिक की डायरी के पृष्ठ

देश मेरे ! जिन्दगी के आज इस अन्तिम प्रहर में लिख रहा हूँ डायरी के पृष्ठ कुछ जो वचन तुझको दिया था, वह निभाया है प्राणपण से आज तेरा ऋण चुकाया है ! अटकते से आ रहे हैं श्वास लड़खड़ाते चल रहे हैं हाथ घूमता ही जा रहा है माथ। Read more…

ओ विभीषण, ओ विभीषण, ओ विभीषण, ओ विभीषण

अति भला होता अगर ईश्वर तुम्हें पत्थर बनाता समय पर तू शत्रु का सिर फोड़ने के काम आता हाय! तेरी माँ न शठ ! क्योंकर तुझे पहिचान पाई ? जन्मते ही जो न उसने, विषभरी घुट्टी पिलाई क्या बुरा था, गर्भ गिर जाता, निंपूती ही कहाती विश्व से कर्त्तव्य की Read more…

ध्यान से सुन देशवासी!

एकता बोली–सुनो कवि ! चाहते हो यदि विजय आकर तुम्हारा पथ बुहारे। चाहते हो यदि पराजित शत्रु चरणों को पखारे। राष्ट्र के हर व्यक्ति से कह दो करे सम्मान मेरा मैं तुम्हारे राष्ट्र के हर व्यक्ति हित संजीवनी हूँ मैं रहूँ जिस राष्ट्र में वह हो पराजित- आज तक सम्भव Read more…

हाथ की रेखा मिटा दे

हाथ पर तेरे नियति ने खींच एक लकीर बाँध दी तेरे सुदृढ़ पग में प्रबल जंजीर देख रेखा ज्योतिषी ने कह दिया तत्काल तू भिखारी ही रहेगा लिखा तेरे भाल सिर झुका तूने नियति की मान ली यह बात स्वयं ही मुर्झा गया तेरा हृदय जलजात शक्ति, क्षमता और साहस Read more…