शक्ति है तुममें

शक्ति है तुममें मुझे अपना बनाने की  मैं विहग, जिसने गगन की वीथियाँ घूमीं, बादलों में रह हठीली बिजलियाँ चूमीं, प्रलय भी देखि, प्रबल हिम–पात भी देखे— शक्ति है तुममें मुझे भू पर बुलाने की ! शक्ति है तुममें मुझे अपना बनाने की।। नीड़ में रहना मुझे बिलकुल नहीं भाया, Read more…

पुरवैया के नूपुर बजते . . .

पुरवैया के नूपुर बजते छूम छनन छन,छन छन। दशों दिशायें स्वर धाराएँ, बिखरने को उन्मन।। नर्तन करती पुरवैया के पग की थिरकन पाकर मत्त मयूरा कुहका अगणित अर्ध चन्द्र फैलाकर अलसाई सी प्रकृति नटी ने भी फिर ली अंगड़ाई प्रिय दर्शन कर मानो कोई वैरागिन बौराई नन्ही नन्ही बुँदिया बरसीं Read more…

एक दिन प्रिय पाहुना . . .

एक दिन प्रिय पाहुना आया तुम्हारे द्वार जा चुकी थी साँझ अपने देवता के देश दे चुकी थी, प्यार का प्रिय को मधुर संदेश राह रपटीली, अंधेरे से रही थी खेल– थकित पंथी कर रहा था पगों की मनुहार। एक दिन प्रिय पाहुना आया तुम्हारे द्वार।। तुम सलौने नीड़ में Read more…

उपेक्षा के शरों से बींध दो . . .

उपेक्षा के शरों से बींध दो उनको– सजनि ! कर व्यंग्य जिनका काम मुस्काना।। जवानी, साथ है फिर रूप, क्या कहने, पड़ेंगे विश्व के ताने हमें सहने, बिना माँगे कई उपनाम आयेंगे तुम्हे पगली, मुझे मदमस्त दीवाना सूरा तो व्यर्थ में बदनाम है रंगिनी ! जवानी का नशा उद्दाम है Read more…

मनुहार !

इस जगती में आकर मैंने मनुहार न करना सीखा है। तुम भला प्रेम को क्या जानो कोई प्रेमी हो पहिचाने कह साधक एक हमारा तू बन गए हृदय -धन मनमाने अभिमान भरा यह प्रेम यहाँ स्वीकार न करना सीखा है। इस जगती में आकर मैंने मनुहार न करना सीखा है।। Read more…

पर काट दिए अब कहती हो . . .

पर काट दिए अब कहती हो उड़ जा इस वन से दीवाने! पहले क्यों उड़ते पंछी पर सखि! जाल अनूपम डाला था फँस गया तुम्हारे फंदो में पंछी ही भोला था वह समझा था अमृत के कण पर वे निकले विष के दाने। पर काट दिए अब कहती हो उड़ Read more…

यह बात किसी से मत कहना . . .

मैं तेरे पिंजरे का तोता, तू मेरे पिंजरे की मैना। पर बात किसी से मत कहना।। मैं तेरी आँखों में बन्दी तू मेरी आँखों में प्रतिक्षण मैं चलता तेरी साँस साँस तू मेरे मानस की धड़कन मैं तेरे तन का रत्नहार, तू  मेरे जीवन का गहना।। यह बात किसी से Read more…

मैं किसी का था . . .

मैं किसी का था तुम्हारा हो गया हूँ। प्राण! तुम बीती हुई बातें न पूछो लोचनों की स्निग्ध बरसातें न पूछो मत करो मजबूर कहने को कहानी मत जगाओ सुप्त हैं स्मृतियाँ पुरानी मैं किसी के प्यार का पाहुन बना था जिन्दगी थी मौन मैं कुछ अनमना था मौन पाहुन, Read more…

पंख यदि होते खुले . . .

पंख यदि होते खुले मैं उड़ तुम्हारे पास आता देखता संसार में फिर कौन मुझको रोक पाता।।  क्या समझता मीत मैं संध्या उषा की लालिमा को चीर जाता मैं अमावस की भयावह कालिमा को रवि किरण जी भर जलाती, गगन की उत्तप्त छाती पर तुम्हारा प्यार मेरे पंथ को शीतल Read more…

तुम तब आना!

तुम तब आना, जब नभ पर घन दल मँडरायें, चपला चमके मन घबरायें, फिर शीत पवन के झोंकों से तन सिहर उठे, सिर झुक जायें।। औ’ अनजाने में बढ़ जायें मेरी बाँहें आलिंगन को– तब धीरे-धीरे से आकर तुम भुज बन्धन में बँध जाना। तुम तब आना, हो नव वसन्त, Read more…