कविता संग्रह
मुसकानों से झाँक रहा क्रन्दन !
इतने कोलाहल में भी सूनापन अक्सर अनुभव करता है मेरा मन कॉफी के घूँट, कहकहे, मित्र अनेक, मित्रता निभाने की गर्वीली टेक। ऊपर से नेह भरी मीठी बातें अन्तर में पलती रहती हैं घातें। कहने को इतना कुछ, पर कौन कहे ? इस रेतीली सरिता में कौन बहे ? हैं Read more…