अंतर्गीत
किसी समय सन्ध्या को आना।
बन कर नभ का राजदुलारा, सुन्दर तारा प्यारा-प्यारा, मैं अपलक होकर देखूँगा चमक-चमक तुम झलक दिखाना। किसी समय सन्ध्या को आना। सारे जग की लिए उदासी, मैं जब जाऊँ बनवासी, तुम विहंग बन कर फिर मुझको अपना प्यारा नाथ सुनाना। किसी समय सन्ध्या को आना । सूरज नभ में डूब Read more…