है जीवन का उत्कर्ष और अपकर्ष यहाँ !

मेरे अन्तर के गीत तुम्हें भायेंगे ही ! इन में जीवन की, सुख दुख की बातें भी हैं, इन में रोदन की, गायन की रातें भी हैं। इन में है विश्वास कि जिस की क्षमता पर, हँस हँस कर काट दिए जीवन के दुसह प्रहर। इन में मेरे जीवन की Read more…

मुसकानों से झाँक रहा क्रन्दन !

इतने कोलाहल में भी सूनापन अक्सर अनुभव करता है मेरा मन कॉफी के घूँट, कहकहे, मित्र अनेक, मित्रता निभाने की गर्वीली टेक। ऊपर से नेह भरी मीठी बातें अन्तर में पलती रहती हैं घातें। कहने को इतना कुछ, पर कौन कहे ? इस रेतीली सरिता में कौन बहे ? हैं Read more…

चार दिन की चाँदनी

चार दिन की चाँदनी मेरे जगत में भी रही। तुम गगन के चाँद बनकर मुसकराये थे कभी हृदय-सागर में अनूठे ज्वार आये थे कभी हैं मुझे यह याद सुध-बुध भूलकर संसार की – प्यार में डूबे हुए कुछ गीत गाते थे कभी। प्रीत की गंगा कभी मेरे जगत में भी Read more…

जो लहर मझदार में लहरा चुकी हो

जो लहर मझदार में लहरा चुकी हो – कूल पर आना उसे भाता नहीं हैं। हाल मेरी जिंदगी का भी यही है – बन प्रबल मझधार, मस्ती से वही है ढूँढ कोई भी न पाया थाह मेरी रोक कोई भी न पाया राह मेरी मैं चला जिस पंथ पर तूफ़ान Read more…

लगा पूछने मुझसे . . .

एक दिवस पाकर कुछ सूने क्षण, लगा पूछने मुझसे मेरा मन ! सावन कब आया, कब बीत गया ? मेघों ने कब छेड़ा राग नया ? इंद्रधनुष ने कब ली अंगड़ाई ? शरद-पूर्णिमा कब भू पर आई ? कब वसन्त मुसकाया मधुबन में ? कब गुलाल इतराया आँगन में ? Read more…

मेघ ने सौदामिनी से . . .

मेघ ने सौदामिनी से कह दिया है – तू बिना पूछे न धरती पर गिरा कर! स्वाति, चातक, मोर मेरे हित तरसते। देख उनका मोह मेरे दृग बरसते। औ’ कृषक-सुकुमारियाँ जब गीत गातीं गीत के हर बोल में मुझको बुलातीं। मैं धरा-हित नेह की गंगा बहाता। औ’ तृषातुर धरणि को Read more…

मैं हूँ यथार्थ का जीवन में हामी

हैं तुम्हें चाँदनी रातें ही भातीं- मैं मावस से भी प्यार निभाता हूँ।। तुम चन्द्र बदन की छवि तक सीमित हो कुन्तल के फन्दों में फँसने वाले तट से ही गिनते सरिता की लहरें – कृत्रिम मादकता पा हँसने वाले है सरिता की गहराई में जाकर – उसकी लहरों से Read more…

अरमानों ने पूछा !

कब तक दबे रहेंगे हम तेरे ही अन्तर में – उस दिन मुझसे भाव-भरे अरमानों ने पूछा ! कब तक हमें दिलासा देकर तू भरमाएगा कब तक मधु का चषक अधर तेरे एक आएगा पी पी कर कटु सत्य विश्व का प्रिय ! हम झुलस गए तू छलिया छलता है Read more…

अपने ही द्वारा अपना अभिनंदन

अपने ही द्वारा अपना अभिनंदन स्वीकार नहीं है मुझ को मेरे मन ! चाहो तो सुस्ता लो, पर मत ऊबो, पीड़ाओं के भंवरों में मत डूबो, वरदान न मांगों  तुम जग वालों से; अमृत की चाह करो मत व्यालों से; अनुभूति नई लेने दो जीवन में; मिट जाने दो अपने Read more…

आँसू मुखड़ा धोने के लिए नहीं

मैंने विषसिक्त व्यथाओं से पूछा – कब मुझे मिलेगी मुक्ति कहो ? तपतीं पीड़ाओं में से एक हँसी, बोली- यह ही अच्छा है शांत रहो। यदि हम न तपाती तुझको कंचन सा तेरी रचना के अधर न खुल पाते यदि हम न तुझको आकर आँसू देतीं – तुझसे तृष्टा के Read more…